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Ghalib Shayari
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदने हो जो अब रख राख जुस्तजू क्या है !!
आईना देख के अपना सा मुँह लेके रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना गुरूर था !!
मेरे बारे में कोई राय मत बनाना गालिब,
मेरा वक़्त भी बदलेगा तेरी राय भी !!
आज फिर पहली मुलाक़ात से आग़ाज़ करूँ,
आज फिर दूर से ही देख के आऊँ उस को !!
कितना खोंफ होता है रात के अंधेरे में जाकर पूछ,
उन परिंदों से जिनके घर नही होते !!
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं !!
चांदनी रात के खामोश सितारों की क़सम,
दिल में अब तेरे सिवा कोई भी आबाद नहीं !!
उनको देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है !!
तेरे हुस्न को परदे की जरूरत नही ग़ालिब,
कोन होश में रहता है तुझे देखने के बाद !!
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना !!
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे !!
हैं और भी दुनिया में सुखन-वर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और !!
Mirza Ghalib Shayari
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल,
के खुश रखने को ग़ालिब ए खयाल अच्छा है !!
रोने से और इश्क में बे-बाक हो गए,
धोये गए हम इतने कि बस पाक हो गए !!
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने,
ग़ालिब के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे !!
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है !!
इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी काम के थे !!
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है !!
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते !!
बाजीचा ए अतफाल है दुनिया मिरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे !!
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई !!
मौत का एक दिन मुअय्यन है,
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती !!
रहा गर कोई तो क़यामत सलामत,
फिर इक रोज़ मरना है हज़रत सलामत !!
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और !!
Mirza Ghalib Shayari in Hindi 2 lines
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रोनक,
वो समझते हैं की बीमार का हाल अच्छा है !!
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ,
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ !!
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ,
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन !!
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब‘,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे !!
मैं नादान था जो वफा को तलाश रहा ग़ालिब
यह न सोचा के इक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी !!
मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं,
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं !!
ग़ालिब बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे,
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे..!!
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते..!!
हाथों की लकीरों पे मत जा ए ग़ालिब नसीब,
उन के भी होते है जिन के हाथ नही होते !!
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए !!
मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते है जिस काफ़िर पे दम निकले !!
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं !!
Shayari Ghalib
वो आए घर में हमारे खुदा की कुदरत है,
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते है !!
इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं,
जी ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देख कर !!
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता !!
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को,
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं !!
हम जो सबका दिल रखते है,
सुनो हम भी इक दिल रखते है !!
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने !!
ज़िन्दग़ी में तो सभी प्यार किया करते हैं,
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा !!
अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो,
आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही !!
Shayari of Ghalib
तुम न आए तो क्या सहर न हुई,
हाँ मगर चैन से बसर न हुई !!
तेरे हुस्न को पर्दे की ज़रुरत नहीं है ग़ालिब,
कौन होश में रहता है तुझे देखने के बाद !!
इश्क़ पर ज़ोर नही है ये वो आतिश ग़ालिब,
की लगाए ना लगे और बुझाए ना बुझे !!
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको उन्होने न होता मैं तो क्या होता !!
मुझे कहती हे तेरे साथ रहूंगी सदा ग़ालिब,
बोहत प्यार करती हे मुझसे उदासी मेरी !!
आईना क्यों न दूँ की तमाशा कहें जिसे,
ऐसा कहाँ से लाऊं की तुझ सा कहें जिसे !!
रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए,
धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए !!
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले !!
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है ?
आखिर इस दर्द की दवा क्या है ?
आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम,
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे !!
ज़िंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं,
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा !!
करने गए थे उनसे तगाफुल का हम गिला,
‘की एक ही निगाह कि हम खाक हो गए !!
Mirza Ghalib Shayari
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे,
हँसी अब किसी बात पर नही आती !!
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता,
तुम न होते न सही जिक्र तुम्हारा होता !!
एक आखरी मुलाकात को बुलाया था उसने मैंने,
ना जाकर उस मुलाकात को बचा कर रख दिया !!
मुसाफिर कल भी था मैं मुसाफिर आज भी हूं कल,
अपनों की तलाश में था आज अपनी तलाश में हूं !!
न सुनो गर बुरा कहे कोई, न सुनो गर बुरा कहे
कोई रोक लो गर गलत चले कोई बख्श दो गर खता करे कोई !!
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं,
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं !!
हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा !!
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,
मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह !!
बादशाह तो सिर्फ वक्त होता है,
इंसान तो यूँ ही गुरुर करता है !!
हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे !!
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं,
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं !!
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर इक ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां, लेकिन फिर भी ही कम निकले !!
Mirza Ghalib Shayari in Hindi
मेरे बारे कोई राय मत बनाना ग़ालिब,
मेरा वक्त भी बदलेगा तेरी राय भी !!
मोहब्बत तो बस मुझे हुई थी,
उसे तो बस तरस आया था मुझ पर !!
या खुदा, न वह समझे हैं, न समझेंगे मेरी बात,
दे और दिल उनको, जो न दे मुझको जुबां !!
न लुटता दिन को तो मैं रात को यूँ बे-ख़बर सोता,
रहा खटका ना ही चोरी की दुआ देता हूँ रहज़न को !!
मुस्कान बनाये रखो तो सब साथ है ग़ालिब वरना,
आंसुओ को तो आँखों में भी पनाह नही मिलती !!
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के !!
आया है मुझे बेकशी इश्क़ पे रोना ग़ालिब,
किस का घर जलाएगा सैलाब भला मेरे बाद !!
हर एक बात पे कहते हो तुम, कि तू क्या हैं,
तुम्हीं कहो कि ये अन्दाज़-ए-गुफ्तुगू क्या हैं !!
हम जो सबका दिल रखते है,
सुनो हम भी इक दिल रखते है !!
दिल से तेरी निगाह, जिगर तक उतर गई,
दोनों को इक अदा में रजामंद कर गई !!
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !!
वक़्त मोहताज कर गया ग़ालिब,
वरना माँ के आँचल तले नवाब थे हम !!